पलामू। जीवन की कल्पना पानी के बिना नहीं की जा सकती है इसीलिए सदियों से एक कहावत चली आ रही है - जल ही जीवन है। मानव सभ्यता का विकास ही नदी घाटी के किनारे हुआ है। इंसान को शौहरत की भूख मौत के करीब ला दिया। नेशनल हाईवे,रेलवे,सेज गेज के नाम पर सड़के बहुमंजिला इमारतें इन सब के लिए माइनिंग क्रसिंग जंगल की बेतहाशा कटाई ग्लोबल वार्मिंग का स्थाई बना दिया। जिसका नतीजा है भूगर्भीय जल पाताल पकड़ लिया। पीने का पानी बोतल से खरीददारी हो रहा है। पर्यावरणविद का कहना है अगर इसी तरस जल का दोहन रहा तो 2050 तक पीने के पानी का टोटा पड़ जाएगा।
आज समग्र ग्राम विकास समिति द्वारा स्थानीय एच एम रिसॉर्ट में जल संचय व संवर्धन नदियों के पुनर्जीवन हेतु पलामू प्रमंडल स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के विषय था समुदाय के भागीदारी से नदी नालों का संरक्षण। इस विषय पर उपरोक्त वक्तव्यों को आगे बढ़ाते हमने कहा कि यू एन के एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बोर वेल के जरिए सबसे ज्यादा पानी निकाला गया किंतु बहाव को रोका नहीं गया सबसे पहले इस पर रोक लगनी चाहिए। समूह बना कर इस पानी को दिया जाए। सिंचाई के लिए नदी नालों के पानी को खेत तक पहुंचाया जाए। आजादी के बाद तत्कालीन पलामू में एक रिपोर्ट के मुताबिक पैंतालीस फीसदी जंगल था और आज नौ फीसदी बचा है। हम उम्मीद करते है प्राण वायु की कोविड समझा दिया है।जंगल के कटाई को हर हाल में रोका जाए और काटने से पहले पौधों को लगाया जाए। अब वक्त आ गया है विकास के नाम पर कॉरपोरेटीकरण से बचने और सामुदायिक पट्ठा लेकर जल जंगल बचाने का तभी आने वाली पीढ़ी सुरक्षित रहेगी।
विनोद प्रसाद,जेम्स हेरेंज,मिथिलेश जी,शिवशंकर प्रसाद,मेघा श्री राम,प्रेम प्रकाश, सेवानिवृत प्रोफेसर डी एस श्रीवास्तव सहित पूरी टीम को हार्दिक बधाई जो अपने जल संचय संवर्धन पर कार्यशाला आयोजन का लोगों को जागरूक किया।
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