मानव जीवन में अध्यात्म की बेहतर भूमिका : अविनाश देव | ST. Maryam Residential School



✍️धनंजय तिवारी

पलामू। जीवन की तमाम उपलब्धियों के बावजूद भी द्वेष, क्रोध, पश्चाताप, एकाकीपन, असहिष्णुता व व्याकुलता की गति तीव्र होती जा रही है, इसे संतुलन करने के लिए मानव जीवन में आध्यात्मिक गुरुओं का होना अति आवश्यक है जिसे लेकर  रविवार की संध्या में संत मरियम आवासीय विद्यालय परिसर में एक आध्यात्मिक परिचर्चा का आयोजन किया गया। आयोजित परिचर्चा का शुभारंभ गुरु के भजनों से प्रारंभ हुई जहां बॉलीवुड की कई सुप्रसिद्ध फिल्मों में अपनी आवाज की जादू बिखेर चुकी वरिष्ठ गायिका  मेघाराम डाल्टन ने अपनी सुरीली  स्वर से कार्यक्रम को नयी रंग दी साथ ही इस सभा को सुरमई करने में श्याम किशोर पांडे,  पंकज निराला, ओंकार नाथ तिवारी, भूपेश शर्मा, गौरव राय, सतीश तिग्गा, शिव राम व अन्य लोगों का खास योगदान रहा। जिनके आवाज व वाद्य यंत्र की धुन पर बच्चे खूब झूमे। तत्पश्चात गुरु महत्व को लेकर घंटों भर परिचर्चा हुई उसी कड़ी में विद्यालय के चेयरमैन श्री अविनाश देव ने बताया कि यह आध्यात्मिक शाम का आयोजन किसी विशेष जाति, धर्म या मजहब को बढ़ावा देने का उद्देश्य से नहीं किया गया क्योंकि जिस तरह हम प्यास बुझाने के लिए विभिन्न पात्रों का उपयोग में लाते हैं वैसे हीं हम परमात्मा को पाने के लिए  एंव स्वयं की जागृति के लिए विभिन्न धर्म व ग्रंथो की मार्ग पर चलते जरूर हैं पर हम सभी का लक्ष्य तो एक ही है और भला हो भी क्यों नहीं क्योंकि हम सब तो एक का ही संतान है। आगे उन्होंने कहा कि आज हम आधुनिक भारत व उन्नत प्रौद्योगिकी के दौर में जी रहे हैं जहां प्रौद्योगिकी मानव जीवन को एक नई आयाम दे रही है, आधुनिक अध्ययन चांद तक पहुंचा रही है व पाताल के तल भी दिखा रही है लेकिन यह तमाम टेक्नोलॉजी मनुष्य अपने स्वार्थ के खातिर प्राकृतिक संसाधनों का भोगने का एकमात्र प्रबंध है और कुछ नहीं। आज हम प्रौद्योगिकी के माध्यम से चांद पर हवा ढूंढ रहे हैं मंगल पर पानी ढूंढ रहे हैं पर यह समस्त चीज धरती पर होने के बावजूद भी इसके अभाव में हम जान  गवां रहे हैं, मनुष्य की मानवता ताख पर रखी हुई है इसलिए बच्चे अनाथ आश्रम में पल रहे हैं, बेटों के हृदय का ह्रास व आत्मा मृत हो गयी हैं इसलिए मां-बाप वृद्ध आश्रम में बैठकर राहगीरों के चेहरों में बेटे की परछाई  देख रहें हैं। और इसका एक ही मात्र कारण है मनुष्य में अध्यात्म की कमी। इसलिए संत मरियम का प्रयास है कि इस विद्यालय के बच्चे को शैक्षणिक गुणों से परिपूर्ण, विभिन्न कलाओं में पारंगत बनाने के साथ- साथ अध्यात्म, परंपरा व संस्कारी गुणों को भी समावेशित करना होगा। तभी वह अपने व माता-पिता के जीवन में रंग भर सकते हैं। साथ ही इन्होंने अभिभावकों से अनुरोध भी किया की अधिकतर अभिभावक उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अपने बच्चों पर दबाव बनाते हैं, हालांकि वह उन्नत प्रदर्शन तो कर पता है लेकिन साथ ही वह एकाकी व स्वार्थी भी बन जाता है, प्रतिस्पर्धा करते- करते वह अपने परिवार, समाज व रास्ट्र के प्रति भी प्रतिस्पर्धि भाव रखने लगता है। इसलिए समाज को समझना होगा कि बच्चे उत्पादन न होकर जीते - जागते मनुष्य है और मनुष्य का निर्माण स्नेह, समर्पण, संयम, धैर्य एवं संवेदनाओं से ही संभव है जिसे विकसित करने के लिए अध्ययन के साथ-साथ अध्यात्म  का होना बहुत जरूरी है।

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