आदिवासी संस्कृति का महत्वपूर्ण प्राकृतिक पर्व है करमा पूजा : धनंजय तिवारी |karma puja palamu


नेशनल केयर फाउंडेशन के झारखंड राज्य प्रभारी एवं कान्यकुब्ज ब्राह्मण महासभा के पलामू जिला संयोजक धनंजय तिवारी ने कहा कि हिंदू परंपरा में साल भर में कई त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें से एक है करमा पूजा. भारतीय त्योहारों में शुमार करमा पूजा को मुख्यरुप से झारखंड, बिहार, असम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है. आदिवासी संस्कृति के इस महत्वपूर्ण प्राकृतिक पर्व को हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. करमा पूजा का विशेष महत्व भाई-बहन के रिश्ते में प्यार और स्नेह को बढ़ाने में है. इस दिन पूजा-अर्चना करके लोग अपने पारिवारिक संबंधों को मजबूत बनाने की कोशिश करते हैं. इस साल 14 सितंबर 2024 यानी आज करमा पूजा का पर्व मनाया जा रहा है. करमा और धरमा इस त्योहार के मुख्य देवता होते हैं, जिनके प्रति श्रद्धा और आस्था प्रकट की जाती है.


आदिवासी संस्कृति का प्राकृतिक पर्व है करमा


करमा को झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व माना जाता है, जिसे आदिवासी और सदान मिल-जुलकर सदियों से मनाते आ रहे हैं. यह पर्व सदाचार, परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु और मंगलमय भविष्य की कामना करती हैं. इस दिन आदिवासी समुदाय के लोग ढोल और मांदर के थाप पर झूमते गाते हैं, जो आदिवासी संस्कृति का प्रतीक है. इसके साथ ही पूजा करके आदिवासी अच्छे फसल की कामना करते हैं और बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं.


करमा पर्व में कैसे होती है पूजा?


करमा पर्व के दिन पूजा शुरु करने से पहले आंगने के बीच में करम वृक्ष की शाखा लगाई जाती है. इस दिन करम वृक्ष के डाल को एक बार में कुल्हाड़ी से काटा जाता है. इस दौरान इस बात का ख्याल रखा जाता है कि डाली जमीन पर न गिरे. जंगल से करम शाखा को लाकर घर के आंगन के बीचों-बीच लगाया जाता है. कर्मा वृक्ष रोपित होने के बाद घर-परिवार के सभी लोग पूजा में शामिल होते हैं. प्रकृति को आराध्य देव मानकर उनकी पूजा की जाती है. प्रसाद में चना, उड़द, जौ, गेहूं, मकई, ज्वार, कोदो का अंकुर और गुड़ चढ़ाया जाता है. पूजन के दौरान करमा और धरमा की कहानी सुनी जाती है.


करमा पर्व का महत्व


करमा पर्व के दिन बहनें व्रत रखती हैं और इस दिन नाखून कटवाकर स्नानादि से निवृत्त होकर वो अपने पैरों में आलता लगाती हैं. इसके साथ ही रंग-बिरंगे नए वस्त्र पहनकर साज-श्रृंगार करती हैं और आभूषण पहनती हैं. जावा डाली को भी कच्चे धागे में गूंथे फूलों की माला से सजाया जाता है. इस दिन महिलाएं पूजा स्थल पर करमैती करम के पत्ते पर खीरा रखकर पांच बार काजल और सिंदूर का टीका लगाती हैं, फिर उस पर उरवा चावलों का चूर्ण डालकर खीरे को गोल-गोल टुकड़ों में काटकर करम वृक्ष की शाखा में जगह-जगह पिरोया जाता है. खीरा पुत्र का प्रतीक माना जाता है, इसलिए खीरे को करम देव को समर्पित कर महिलाएं स्वस्थ पुत्र की कामना करती हैं।

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